मुस्लिम औरतों पर बेपनाह जुल्मों के बाद मुस्लिम औरतों को आज़ादी के नाम पर “नये इस्लाम” के भ्रम में उलझाता मुस्लिम पुरुष।
विश्व भर में जिस तरह से शिक्षा और संचार का स्तर बढ़ रहा है, उससे प्रेरित होकर मुस्लिम औरतें भी अब खुल कर बग़ावत पर उतर गई हैं।
इस बग़ावत का सामना मुस्लिम पुरुष नहीं कर पा रहा है, पर इस बग़ावत को थोड़ा उलझाने के लिये अब वो पैसे के बलबूते कुछ युवकों को मदद कर के सोशल मीडिया में इस्लाम को आधुनिकतावाद के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। पर उसकी ये कोशिश मुस्लिम पुरुष का ओर मज़ाक़ बना रही है।
कभी हलाल डेट, कभी हलाल टूरिज्म जैसी धकियानूसी सोच और प्रचार के साथ अपनी असलियत को दुनिया के सामने ला रहा है मुस्लिम पुरुष।
- इसमें सोचने वाली बात है कि क्या कारण है कि मुस्लिम पुरुष इतना डर गया है अपनी ही औरतों से ?
- क्या मुस्लिम पुरुष की ये चाल कामयाब हो पायेगी ?
- क्या दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने की नीयत है मुस्लिम पुरुष में ?
- इन प्रश्नों से और अपनी आधी आबादी की इस बग़ावत से कहाँ तक भागेगा मुस्लिम पुरुष ?
“जो समाज समय के साथ नहीं चलता, समय उस समाज को निगल जाता है”
