ये गीत और इसकी पंक्तियाँ इस समय सभी इस्लामिक देशों में बहुत हिट करवाई जा रही हैं। विशेष रूप से घाटी में हर युवा इसे अपनी रिंगटोन के रूप में सेव कर रहा है और इस पर खूब रील्स भी बन रही है।
वर्तमान में इसे फिलिस्तीन की आज़ादी और संघर्ष के बहाने से अपनी स्टेट (राज्य) के हक़ में लड़ते हुए इसे दिखाया जा रहा है, अंततः इसका लक्ष्य इस्लाम का परचम ही है।
ये गीत 1980 में अफ़ग़ानिस्तान में अब्दुल वहाब मददी द्वारा लिखा गया था और इन्होंने इसे पर्शियन में गाया था, इसलिए भी ये गीत इस समय इस्लामिक जगत में सबको समझ भी आ रहा है और इसकी धुन भी बहुत 'आक्रामक' है।
ग्रीक (यूनान) के मिकिस थियोडोरेकिस ने इसे कंपोज किया था। ये दोनों लोग उस समय की कामरेड विचारधारा के समर्थक भी थे। वर्तमान में ये गीत 'मुस्लिम पुरुषों' का एक जुनून बनता जा रहा है।
इस गीत के बोल मुसलमानों को अपने अलग मुस्लिम राज्य के लिए उकसा रहे है। ये गीत मुस्लिम पुरषों को भड़काने के लिए एक टूल की तरह काम कर रहा है। ये मुसलमानों को कश्मीर में और अन्य राज्यों में यहाँ मुस्लिम आबादी अच्छी है, वहां पर अपनी मांगों, अपने हक आदि के लिए संघर्ष तीखा करने के लिए प्रेरत कर रहा है।
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