21वीं सदी में महिलाओं का स्थान घर की चारदीवारी में रहना है यानी घर की सीमा के अंदर ही है, ऐसा मानना एक विकृत धारणा है। इस तरह के रूढ़िवादी विचारधारा वाले लोगों की सोच आज भी कुछ समाजों में मौजूद है। खास करके मुसलमानों के अंदर।
एक समय था जब महिलाएं अपनी आवाज़ बुलंद करने में हिचकिचाहट महसूस करती थीं, लेकिन आज के समय में महिलाएं समाज में बदलाव लाने के लिए उत्सुक हैं और उन्हें इस मुसलमानी सोच के खिलाफ खड़ा होने में कोई डर नहीं है। वे अब इस प्रकार की सोच वाले लोगों के मुंह को बंद करने से पीछे नहीं हट रही हैं।
औरतों के बारे में ऐसी दरिंदगी भरी सोच रखने वाले मुसलमान मर्दो के खिलाफ वहाँ की मुसलमान महिलाओं ने साल 2018 से एक पहिल शुरू की हुई है। ये पहिल पाकिस्तान की स्वयंसेवी महिला संगठन 'हम औरतें' ने औरत मार्च की शुरुआत की थी। यह संगठन हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर 8 मार्च को औरत मार्च का आयोजन करती है।
'औरत मार्च' हर साल की तरह इस साल भी 8 मार्च को पाकिस्तान के 10 बड़े शहरों में निकाला गया। ये सातवाँ 'औरत मार्च' था। इस मार्च का उद्देश्य महिलाओं को 'पैर की जूती' समझने वाले लोगों से आज़दी लेना है। और पाकिस्तान में स्वास्थ्य देखभाल, पितृसत्तात्मक हिंसा और महिलाओं और यौन अल्पसंख्यक समूहों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव को उजागर करना है। मार्च के दौरान उन्हों ने नारा दिया कि 'जब तक औरत तंग रहेगी, जंग रहेगी गी, जंग रहेगी!'
एक तरफ जहाँ ये क्रन्तिकारी सोच वाली महिलांए पाकिस्तान को सुधारने के लिए हर साल मार्च निकलती है। वहीं रूढ़िवादी सोच वाले मुसलमान इन औरतों को जान से मारने की धमकी से लेकर गंदी गाली देने से भी पीछे नहीं हट रहे।
एक बात तो सिद्ध है कि मुसलमानों की इस गन्दी सोच और कुरीतिओं को ये क्रन्तिकारी मुस्लमानिनी ही समय के साथ ठीक करेगी।