पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया की संसद में महिलाओं के प्राइवेट पार्ट से जुड़ा बड़ा फैसला हुआ है। महिलाओं के जननांगों को विकृत करने की प्रक्रिया- खतना पर प्रतिबंध को हटा लिया गया है।
मुस्लिम समाज में महिलाओं को महज पैर की जूती के बराबर ही समझा जाता है। इस समाज में ऐसी भयंकर परंपराएं हैं, जिसको सुनकर ही रूह कांपने लगती है। महिलाओं के लिए मुस्लिम समाज में जन्म लेना ही मानो एक गुनाह है।
आज हम ऐसी ही एक परंपरा के बारे में बात करने जा रहे है, जिसे लेकर हाल ही में अफ़्रीकी देश गांबिया ने अहम फैसला लिया है। ये परंपरा है 'मुस्लिम महिलाओं का खतना' जो की महिलाओं के प्राइवेट पार्ट से जुडी हुई परंपरा है। हम में से ज्यादातर लोगों ने सिर्फ़ पुरषों के खतने के बारे में सुना या पड़ा होगा, लेकिन मुस्लिम मजहब में पुरषों के साथ-साथ महिलाओं के ख़तने की भी परंपरा है। रुढ़िवादी मुसलमान महिलाओं को खतना के बिना 'अशुद्ध' मानते हैं।
छोटी उम्र में ही करा दिया जाता है खतना
लड़कियों का खतना किशोरावस्था से पहले यानी छह-सात साल की छोटी उम्र में ही करा दिया जाता है। इसके कई तरीके हैं. जैसे क्लिटरिस के बाहरी हिस्से में कट लगाना, या इसके बाहरी हिस्से की त्वचा निकाल देना। खतना से पहले एनीस्थीसिया भी नहीं दिया जाता। बच्चियां पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से चीखती हैं। पारंपरिक तौर पर इसके लिए ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल करते हैं और खतना के बाद हल्दी, गर्म पानी और छोटे-मोटे मरहम लगाकर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है। बोहरा मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली इंसिया दरीवाला के मुताबिक 'क्लिटरिस' को बोहरा समाज में 'हराम की बोटी' कहा जाता है। बोहरा मुस्लिम मानते हैं कि इसकी मौजूदगी से लड़की की यौन इच्छा बढ़ती है।
अफ्रीकी देश गांबिया में महिलाओं का खतना अब प्रतिबंधित नहीं
पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया की संसद ने महिलाओं के जननांगों से जुड़ी रुढ़िवादी परंपरा पर लगा हुआ प्रतिबंध हटाने का फैसला लिया है। जिक्रयोग है कि महिलाओं के प्राइवेट पार्ट से जुड़ी इस प्रक्रिया - खतना को 'मेडिकल-साइंस' में महिला जननांग विकृति (Female Genital Mutilation) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में महिलाओं के जननांग को आंशिक या पूर्ण रूप से हटाया जाता है। महिला अधिकार कार्यकर्ता इसे 'चोट पहुंचाना' बताते हैं। इस फैसले के बाद गाम्बिया की लाखों महिलाओं और लड़कियों को खतना प्रथा के खिलाफ मिली कानूनी सुरक्षा खत्म हो जाएगी। संसद के फैसले के बाद साल 2015 में महिलाओं के खतना पर लगाया गया कानूनी प्रतिबंध हट जाएगा। साल 2015 में लगाए गए बैन के साथ-साथ तीन साल की जेल का प्रावधान भी किया गया था।
महिलाओं के खतने के बारे में क्या कहता है संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक, "एफ़जीएम (FGM) की प्रक्रिया में लड़की के जननांग के बाहरी हिस्से को काट दिया जाता है या इसकी बाहरी त्वचा निकाल दी जाती है." यूएन इसे 'मानवाधिकारों का उल्लंघन' मानता है। दिसंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें एफ़जीएम को दुनिया भर से ख़त्म करने का संकल्प लिया गया था। महिला खतना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे रोकने के मकसद से यूएन ने साल की 6 फ़रवरी तारीख़ को 'इंटरनेशनल डे ऑफ़ ज़ीरो टॉलरेंस फ़ॉर एफ़जीएम' घोषित किया है।
